Monday, June 15, 2009

होली ...



कुछ रंग है...
जमीं पर बिखरे...
कुछ अटके कपडों पर...
कुछ दीवारों पे छिटके...
कुछ हवा में...
कुछ आसमान में...
और रंगों के बिच हूँ मैं...
एक रंग है जो दूर कहीं...
बुखार में सुलग रहा...
हवा में उठे हाथ और रुक जाने सा...
एक रंग है जो रात गए छत पर...
जल रहा है बुझता-बुझता...
एक शाम है रंगों में रंगी हुई...
एक रात है नसों में डूबी हुई...
और कुछ नहीं है...
कोई रंग रोशनी राख...
सिर्फ़ हवा है, तेज़ और तेज़...
और कुछ भी नही है जिसमे,
अपनी जगह...
मैं तुम वो...