Wednesday, December 30, 2009

संदेह में उम्मीद

नया वर्ष ए़क पत्थर है-
पानी से घिस चिकना हो गए
उन् ढेर सारे काले, लाल, सफ़ेद पत्थरों में से ए़क-
केक के खाली हो गए डिब्बे में रख
पिछली विदा में जो दिए थे तुमने- सजाने को कमरे में |

नया वर्ष ए़क पत्थर है
जो दिखा-
सड़क किनारे, चाय की टप्पी पे सिगरेट पीते,
दुनिया और मेरे बीच धुआँ सा था जब,
-थूथन उठाये अपनी दोनों आँखों से मुझे घुरता|
उस की पूँछ में ए़क छेद है,
इस ओर की दुनिया से
उस ओर की दुनिया में जाने के लिए ए़क सुरंग की तरह|
-मैं उठा लाया हूँ.

नया वर्ष ए़क पत्थर है-
इस दफा जो फेंक दें
इधर की दुनिया और उधर के दुनिया के बीच की खाई में
हर बार को झुठलाती
आ ही जाए पेंदे से टकराने की आवाज,
या क्या पता कर ही दे आकाश में सुराख
जो उछाल दें तबियत से,
..मुश्किल सिर्फ इतनी सी है दोस्त
की इस मुश्किल वक़्त में
तबियत का होना ए़क संदेह है|

नया वर्ष ए़क पत्थर है
ट्रक के पहिये से छिटक कर
मेरे सर पर आ लगा है
और अब ए़क पत्थर मेरे भीतर भी है
सर पर उग आये गुमड़ में|
इन्हीं दो पत्थरो के बीच रख
पीसना है मुझे- साल भर मसाला
(इस सन्नाटे में लगाने को छौंक)
पीसनी है मुझे- साल भर गेंहू
दर्रनी है मुझे - साल भर दाल
और पूरे साल
वही रोटी - वही दाल

नया वर्ष ए़क पत्थर है
-मील का
जिस पर लिखा है
कहाँ तक चल चुके हम?
कहाँ था हमें जाना?
और ए़क प्रश्न-
अब पहुचेंगे कहाँ हम ?

 नया वर्ष ए़क पत्थर है
-मेरे हाथ में,
जो दिखा-
सड़क किनारे, चाय की टप्पी पे सिगरेट पीते,
दुनिया और मेरे बीच धुआँ सा था जब,

- इस बाज़ार से दूर
जो डाली जा रही हो नीव किसी घर की
उसी में कही रखनी है मुझे |

Friday, December 11, 2009

चारमीनार

दोस्त ! वक़्त ने पत्थरों-सी एक इबारत लिखी है
जहाँ लोग आते है, जाते है, देखते है, चले जाते है
हमारे वजूद पे लिखे हर्फो की तरह
जिनका कोई हमसाया नही
चारमीनार: एक घड़ी है
जिसकी सुइयां थमी हुई है|


हम घड़ी की उन तीन सुइयों की तरह
लटके पड़े है वही
एक निश्चित दूरियों पर
केंद्र में कही जुड़े एक-दुसरे से|

वक़्त का सफ़र रुका सा है,
चलता क्यों नही ...
की बारह बजे एकबार रात के
और दिन आये ना ...