Monday, November 23, 2009
Sunday, November 15, 2009
एक अफगानिस्तानी मित्र के प्रति संवेदना सहित
हजारों टन बमों और
सैकड़ो क्रुज़ मिस्साइले गिरने का मतलब तुम्हे नहीं पता,
तुम्हे नहीं पता- भूख और बेवशी की पीड़ा,
तुम्हे मालुम भी नहीं
सर्दियों में सिर्फ तन ढकने के कपड़ो के बिना
ठिठुर कर मर जाना
तुम्हे नहीं पता
गरीबी और गरीबों की बीमारियाँ,
तुम्हे नहीं पता
दवाओं के बिना बुखार में तप कर मरना
तुम तो एन्थ्रेक्स से सिर्फ एक मौत पर
दुनिया भर की प्रयोगशालाओं में तैयार करवाने लगे हो एन्टीडोट्स
तुम्हारी मीनारों के जमीन छूने की एवज में
तुमने मिटा डाला है जमीन का ए़क टुकडा ही
जहां लाखों लोग तबाह है
तुम स्वर्ग के बाशिंदों
तुम्हे क्या पता -- भूख और ठंढ से मरने से बेहतर है
हमारे लिए
तुम्हारे बमों की आंच में मरना
जब मरना ही हो आख़िरी विकल्प
Note :- कविता 5 साल पुरानी है.... पर कहानी नहीं
आप अफगानिस्तान की जगह ईराक रख ले नाईजिरिया या येरुशलम.....
सैकड़ो क्रुज़ मिस्साइले गिरने का मतलब तुम्हे नहीं पता,
तुम्हे नहीं पता- भूख और बेवशी की पीड़ा,
तुम्हे मालुम भी नहीं
सर्दियों में सिर्फ तन ढकने के कपड़ो के बिना
ठिठुर कर मर जाना
तुम्हे नहीं पता
गरीबी और गरीबों की बीमारियाँ,
तुम्हे नहीं पता
दवाओं के बिना बुखार में तप कर मरना
तुम तो एन्थ्रेक्स से सिर्फ एक मौत पर
दुनिया भर की प्रयोगशालाओं में तैयार करवाने लगे हो एन्टीडोट्स
तुम्हारी मीनारों के जमीन छूने की एवज में
तुमने मिटा डाला है जमीन का ए़क टुकडा ही
जहां लाखों लोग तबाह है
तुम स्वर्ग के बाशिंदों
तुम्हे क्या पता -- भूख और ठंढ से मरने से बेहतर है
हमारे लिए
तुम्हारे बमों की आंच में मरना
जब मरना ही हो आख़िरी विकल्प
चलो अच्छा है !
इस "इनफाएनाईट जस्टिस" की आड़ में
आजमा लो तुम भी अपने सारे नए ईजाद,
साफ़ कर लो अपने जंग लगते सारे हथियार
ताकि फिर कोई दुसरा अफगानिस्तान न उजडे
और ना ही कोई मुनिया रोये
अपने काबुलीवाला को याद कर-कर
आप अफगानिस्तान की जगह ईराक रख ले नाईजिरिया या येरुशलम.....
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