Friday, December 11, 2009

चारमीनार

दोस्त ! वक़्त ने पत्थरों-सी एक इबारत लिखी है
जहाँ लोग आते है, जाते है, देखते है, चले जाते है
हमारे वजूद पे लिखे हर्फो की तरह
जिनका कोई हमसाया नही
चारमीनार: एक घड़ी है
जिसकी सुइयां थमी हुई है|


हम घड़ी की उन तीन सुइयों की तरह
लटके पड़े है वही
एक निश्चित दूरियों पर
केंद्र में कही जुड़े एक-दुसरे से|

वक़्त का सफ़र रुका सा है,
चलता क्यों नही ...
की बारह बजे एकबार रात के
और दिन आये ना ...

1 comment:

  1. वाह!! बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।

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