Tuesday, October 20, 2009

बावजूद...


रात्रि के दुसरे पहर
सो रही होती हैं
नदी, घर, खिड़कियाँ
और श्मशान|

जागता रहता है
दुर का पुल,
शहर की ओर आती बत्तियां
और नीरवता के स्वरों में गाती
दो-चार पत्तियां|

तब
सहमी-सहमी सी एक लड़की
उलझी-गुथी उनों सी उलझी 
बुनती है
हल्दी के रंग वाले सुलझे
पीले सपने|

2 comments:

  1. सपने बुनती लड़की अच्छी लगी ...कविता की बुनावट भी .....!
    पीले सपने ......नयी बात है !

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  2. सहमी-सहमी सी एक लड़की

    उलझी-गुथी उनों सी उलझी

    बुनती है

    हल्दी के रंग वाले सुलझे

    पीले सपने


    Bahut hi saloni or pyari si soch or rachna.....

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