उस अंधियारे में
जब मेरे उँगलियों में
भींच गयी तुम्हारी उंगलियाँ
सारा कुछ एकांत था
हम जागते रहे, वक़्त सो गया
उस झुटपुटे में
प्रस्तर प्रतिमाओ के साये
मैंने डाली तुम्हारे गले में बाँहे
हमारे होंठ कस गए
हम पाषाण हो गए
मूर्तियाँ चल उट्ठी |
सड़क नापते हुए उस दिन
तुमने बताये थे
जिन्दगी के समीकरण
और मुझे पहली दफा पता चला
(की) मुहब्बत में कोई शर्त नहीं होती
की मुहब्बत सबसे बड़ी शर्त होती है |
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